SWAMI VIVEKANANDA: शिकागो में स्वामी विवेकानंद क्या कहा था लिए जानते हैं
SWAMI VIVEKANANDA: 11 सितंबर 1893 शिकागो में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में अपने अपने देशों को रिप्रेजेंट करने के लिए उनके लोग आए हुए थे और हमारे भारत से गए थे स्वामी विवेकानंद सभी ने वहां पर स्पीच दी थी लेकिन स्वामी विवेकानंद ने धर्म हिंदुत्व वेद गीता और भारत पर जो स्पीच दी थी उससे पूरी की पूरी दुनिया हिल गई
और वहां पर मौजूद हर एक व्यक्ति अपने हाथों को रोक ही नहीं पाया ताली बजाने से जब मैंने स्टीव जॉब्स की स्टैंड फॉर स्पीच पर यह लिखा था कि विश्व की सबसे बेहतरीन स्पीच SWAMI VIVEKANANDA की जो कि उन्होंने दी थी शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में तो क्यों ना उसका भी एक हिंदी ट्रांसलेशन हो ही जाए तो अपने मन को फिर से सारी चिंताओं से मुक्त कर दीजिए और अपना पूरा फोकस आर्टिकल पर
SWAMI VIVEKANANDA:जी के बोला हुआ 10 बेहतरीन बातें
- “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।”
“दिल और दिमाग के बीच संघर्ष में, अपने दिल की सुनें।”
“जब तक आप स्वयं पर विश्वास नहीं करते तब तक आप ईश्वर पर विश्वास नहीं कर सकते।”
“सारी शक्ति आपके भीतर है; आप कुछ भी और सब कुछ कर सकते हैं। उस पर विश्वास रखें, यह न मानें कि आप कमजोर हैं।”
“खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है।”
“अपने जीवन में जोखिम उठाएं। यदि आप जीतते हैं, तो आप नेतृत्व कर सकते हैं, यदि आप हारते हैं, तो आप मार्गदर्शन कर सकते हैं।”
“खड़े हो जाओ, साहसी बनो, मजबूत बनो। सारी जिम्मेदारी अपने कंधों पर लो, और जान लो कि तुम अपने भाग्य के निर्माता हो।”
“दुनिया एक महान व्यायामशाला है जहां हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।”
“किसी की निंदा न करें: यदि आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ऐसा करें। यदि आप नहीं कर सकते, तो अपने हाथ जोड़ें, अपने भाइयों को आशीर्वाद दें, और उन्हें अपने रास्ते पर जाने दें।”
“किसी का या किसी चीज़ का इंतज़ार मत करो। किसी पर भी अपनी आशा कायम करने के लिए आप जो कुछ भी कर सकते हो करो।”
SWAMI VIVEKANANDA:शिकागो में स्वामी विवेकानंद क्या कहा था?
अमेरिका के भाइयों और बहनों आपके इस जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है मैं दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा और सभी धर्मों की जननी की तरफ से आप सभी को धन्यवाद देता हूं मैं सभी जातियों और संप्रदायों के लाखों करोड़ों हिंदुओं की ओर से भी आप सभी का आभार व्यक्त करता हूं
मेरा धन्यवाद उन सभी वक्ताओं को जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार पूर्व के देशों से फैला है मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है और हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं
मुझे गर्व है कि मैं उस देश से हूं जिसने सभी धर्मों और सभी देशों के सताए गए लोगों को अपने यहां शरण दी मुझे गर्व है कि हमने अपने दिल में इजराइल की व पवित्र यादें संजोकर रखी जिनके धर्म स्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़कर खंडरई धर्म से हूं जिसने पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और लगातार अब भी उनकी मदद कर रहा है जिस तरह अलग-अलग जगहों से निकली नदियां अलग-अलग रास्तों से होकर आखिरकार समुद्र में ही मिल जाती है और ठीक उसी प्रकार मनुष्य भी अपनी इच्छा से अलग-अलग रास्ते चुनता है यह रास्ते देखने में भले ही अलग लगते हैं
लेकिन यह सभी रास्ते ईश्वर तक ही जाते हैं मौजूदा सम्मेलन जो कि आज तक की सबसे पवित्र स्वभाव में से एक है वह अपने आप में गीता में कहे गए इस उपदेश का प्रमाण है कि जो भी मुझ तक आता है चाहे कैसा भी क्यों ना हो मैं उस तक पहुंचता हूं लोग अलग-अलग रास्ते चुनते हैं संघर्ष करते हैं लेकिन आखिर में लोग मुझ तक ही पहुंचते हैं यानी कि ईश्वर तक ही पहुंचते हैं अमेरिका और भारत के बीच में कई बार मतभेद हुए हैं और वह क्यों हुए हैं
उसी के संबंध में मैं एक छोटी सी कहानी आपको सुनाता हूं एक कुएं में एक मेंढक रहता था और उसी कुएं में समुद्र से एक मेंढक आ जाता है तो समुद्र वाला मेंढक कुएं वाले मेंढक से पूछता है कि तुम्हारा कुआ कि इतना छोटा है तो कुएं वाला मेंडक कहता है कि तुम कैसी बातें कर रहे हो
क्या तुम्हारा समुद्र बहुत ही बड़ा है तब वह कहता है कि इतना बड़ा है कि तुम सोच भी नहीं सकते फिर कुएं वाला मेंढक कहता है कि ऐसा हो ही नहीं सकता मेरे कुएं से अच्छा और बड़ा इस दुनिया में कुछ भी नहीं है और व उससे कहता है कि तुम मेरे कुए से बाहर निकल जाओ मैं यहीं पर रहूंगा और यही कठिनाई सदैव रही है
मैं हिंदू हूं और मैं अपने कुएं में बैठकर यही सोचता हूं कि मेरा कुआं ही संपूर्ण संसार है ईसाई भी अपने कुए में बैठकर यही समझता है कि सारा संसार उसी के कुएं में है और मुसलमान भी अपने ही कुएं में बैठकर उसी को सारा ब्रह्मांड मानता है देखिए दुनिया में तीन धर्म हैं जो कि पुराणिक काल से हमारे बीच में चले आ रहे हैं हिंदू धर्म पारसी धर्म और यदु ही धर्म लेकिन यदु ही धर्म ईसाई धर्म को अपने अंदर समाहित नहीं कर पाया है जिसके कारण उन्हें अपने जन्म स्थान से ही बाहर निकाल दिया गया
और वहीं पर सिर्फ मुट्ठी भर पारसी ही बचे हैं अपने महान धर्म की कहानी बताने के लिए लेकिन भारत में एक के बाद एक न जाने कितने ही संप्रदायों का उदय हुआ और उन्होंने वैदिक धर्म को जड़ से हिलाकर रख दिया हिंदुओं को अपना धर्म वेदों के माध्यम से रहस्य प्रकट करके मिला है उनका मानना है कि वेदों का ना तो कोई अंत है और ना ही कोई आरंभ आप सभी को यह अजीब लग सकता है कि कोई भी किताब बिना शुरुआत या अंत के कैसे हो सकती है
लेकिन वेदों का मतलब किताब से नहीं है वेदों का मतलब है अलग-अलग समय में अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा खोजे गए आध्यात्मिक का संचित खजाना जिस प्रकार गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत मनुष्य के पता लगाने से पहले भी काम करता था और अगर मनुष्य जाति उसे भूल भी जाए तो भी वह अपना काम करता ही रहेगा और ठीक यही बात आध्यात्मिक जगत का पालन करने वाले नियमों के संबंध में भी है
वेद हमें यह सिखाते हैं कि सृष्टि का ना तो कोई आरंभ है और ना ही कोई अंत कुछ लोग जन्म से ही सुखी होते हैं तो कुछ लोग जन्म से ही दुखी होते हैं कुछ लोग पूर्ण स्वास्थ्य का आनंद भोगते हैं तो कई लोगों के हाथ पांव नहीं होते कई लोगों को सुंदर शरीर सुंदर चेहरा उत्साह पूर्ण मन और सभी आवश्यक सामग्रियां मिल जाती है
तो कुछ लोगों की पूरी जिंदगी दुख में कट जाती है तो ऐसा क्यों है कि एक ही ईश्वर ने अलग-अलग तरह के लोगों को उत्पन्न किया एक को सुखी बनाया तो दूसरे को दुखी बनाया ऐसा क्यों किया भगवान ने ऐसा पक्षपात क्यों किया देखिए सभी धर्मों में यह बताया जाता है कि ईश्वर भेदभाव नहीं करते इसीलिए जन्म से पहले ही कुछ ऐसे कारण रहे होंगे जिसके फल स्वरूप इंसान सुखी या दुखी होता है
और वे कारण है उसके पिछले जन्म के कर्म और वेद हमें प्रेम के संबंध में भी इसी प्रकार की शिक्षा देते हैं प्रेम के संबंध में भगवान श्री कृष्ण उपदेश देते हैं कि मनुष्य को इस संसार में कमल के पत्ते की तरह रहना चाहिए कमल का पत्ता जैसे पानी में रहकर भी उससे भीगता नहीं उसी प्रकार मनुष्य को संसार में रहकर उसका हृदय ईश्वर में लगा रहे और हाथ कर्म में लगा रहे इस लोक में या परलोक में पुरस्कार की आशा से ईश्वर से प्रेम करना कोई बुरी बात तो नहीं है
लेकिन केवल प्रेम के लिए ही ईश्वर से प्रेम करना सबसे अच्छा है भगवान से केवल यही प्रार्थना करनी चाहिए कि हे भगवन मुझे ना तो संपत्ति चाहिए ना संतति ही विध्या केवल इतना ही दे दे कि मैं फल की आशा छोड़कर तेरी भक्ति करूं और केवल प्रेम के लिए ही तुझ पर मेरा निस्वार्थ प्रेम हो और मैं आपको एक बहुत ही कमाल की छोटी सी कहानी सुनाना चाहता हूं श्री कृष्ण के शिष्य युधिष्ठिर एक समय सम्राट थे
लेकिन उनके शत्रुओं ने यानी कौरवों ने उन्हें सिंहासन से निकाल दिया और अपनी पत्नी और भाइयों के साथ उन्हें हिमालय के जंगलों में रहना पड़ा और वहां पर उनकी पत्नी द्रौपदी ने उनसे पूछा कि आप इतने श्रेष्ठ पुरुष हैं मनुष्यों में सर्वोपरि पुण्यवान होते हुए भी आपको इतना दुख क्यों सहना पड़ रहा है और तभी युधिष्ठिर ने उत्तर दिया कि महारानी देखो यह हिमालय कितना भव्य और सुंदर है मैं इससे बहुत ही प्रेम करता हूं
यह हिमालय मुझे कुछ नहीं देता लेकिन मेरा स्वभाव भी ऐसा है कि मैं भव्य और सुंदर वस्तुओं से प्रेम करता हूं और इसी कारण मैं इस हिमालय से प्रेम करता हूं प्रेम करना मेरा स्वभाव है और मैं इसलिए ईश्वर से प्रेम करता हूं मैं किसी बात के लिए प्रार्थना नहीं करता मैं उससे कोई वस्तु नहीं मांगता उसकी जहां इच्छा हो मुझे रखे मैं सभी अवस्थाओं में केवल प्रेम करूंगा और मैं प्रेम से कोई सौदा नहीं कर सकता अब हम दर्शन की अभीप्सा हों से उतरकर ज्ञान रहित लोगों के धर्म की ओर आते हैं और यहां पर मैं आपको पहले ही बता दूं कि भारतवर्ष में अने केश्वर वाद नहीं है
और ना एक देव वाद से इस स्थिति की व्याख्या की जा सकती है क्योंकि गुलाब को चाहे दूसरा कोई भी नाम क्यों ना दे दो उसकी सुगंध वैसी ही रहेगी केवल नाम से व्याख्या नहीं की जा सकती और बचपन की एक बात मुझे यहां पर याद आती है कि एक ईसाई मनुष्यों की भीड़ में खड़ा होकर अपने धर्म का उपदेश दे रहा था और बातों ही बातों में वह हिंदुओं से कह गया कि अगर मैं तुम्हारी देवमूर्ति को एक डंडा लगाऊं तो वह मेरा क्या कर सकती है तभी वहां पर खड़े हुए एक शख्स ने उत्तर दिया कि अगर मैं तुम्हारे ईश्वर को गाली दे दूं तो वह मेरा क्या कर सकता है
तभी उस ईसाई ने कहा कि वह मरने के बाद में तुम्हें सजा देगा तभी वह हिंदू तन करर बोल उठा कि ठीक उसी तरीके से जब तुम मरोगे तो हमारी देवमूर्ति तुम्हें भी कठोर दंड देगी और यहां पर मैं जो कहने वाला हूं उसे ध्यान से सुनिए का अंधविश्वास मनुष्य का महान शत्रु है लेकिन कटर ता तो उससे भी बढ़कर है
और एक बात मैं आपको अवश्य बता दूं कि भारतवर्ष में मूर्ति पूजा कोई जघन्य बात नहीं है वह कोई व्यभिचार की जननी नहीं है बल्कि वह अविकसित मन के लिए उच्च आध्यात्मिक भाव को ग्रहण करने का एक उपाय है अवश्य ही हिंदुओं में भी कई सारे दोष है लेकिन ध्यान रखिए कि उनके दोष अपने ही शरीर को उत्पीड़ित करने तक सीमित है वे कभी भी अपने पड़ोसियों का गला काटने नहीं जाते
एक हिंदू भले ही चीता पर अपने आप को जला डाले लेकिन वह विधर्मी हों को जलाने के लिए कभी भी अग्नि प्रज्वलित नहीं करेगा और यहां पर बैठे हुए सभी ईसाइयों से मैं कुछ कहना चाहता हूं ईसाइयों को सदैव अपनी आलोचना सुनने के लिए तैयार रहना चाहिए और मुझे पूरा विश्वास है कि अगर मैं आपकी आलोचना करूंगा तो आप बुरा नहीं मानेंगे आप ईसाई लोग अपने धर्म प्रचारकों को भेजने के लिए इतने उत्सुक रहते हैं लेकिन लोगों को भूख से मर जाने से बचाने के लिए आप कुछ क्यों नहीं करते
SWAMI VIVEKANANDA: जब भारतवर्ष में भयानक अकाल पड़ा था
जब भारतवर्ष में भयानक अकाल पड़ा था तब सहस्त्र और लाखों हिंदू लोग भूख से ही मर गए थे तब आप ईसाइयों ने उनके लिए कुछ क्यों नहीं किया आप हिंदुस्तान में अपने धर्म का प्रचार करते हैं उनके लिए गिरजा घर बनाते हैं वहां पर लोगों के पास में धर्म की कमी नहीं है वहां पर हिंदुस्तान में लाखों लोग सूखे गले से रोटी के लिए चिल्ला रहे होते हैं वे हमसे रोटी मांगते हैं और हम उन्हें देते हैं पत्थर तो भूखे लोगों को धर्म सिखाना क्या उनका अपमान करना नहीं है
और यहां पर मैं पहले भी आप सभी से अपने गरीब भाइयों बहनों के लिए सहायता मांगने के लिए आ आया था लेकिन मैं समझ गया कि ईसाइयों से और उन्हीं के देश में सहायता प्राप्त करना बहुत कठिन है अब धार्मिक एकता के विषय में और धर्म के विषय में पहले से ही बहुत कुछ कहा जा चुका है अब इस समय में इस संबंध में अपना मत आपके सामने नहीं रखूंगा लेकिन हां अगर कोई यह सोच रहा है कि मेरा उद्देश्य यह है कि एक धर्म की विजय हो और बाकी धर्मों का विनाश हो जाए तो भाई ऐसा होना असंभव है
क्या मैं यह चाहता हूं कि ईसाई लोग हिंदू हो जाए कदापि नहीं तो मैं यह चाहता हूं कि हिंदू और बौद्ध लोग ईसाई हो जाए भगवान मुझे इस इच्छा से बचाए जिस तरीके से भूमि में बीज बोही दिया है और मिट्टी वायु तथा जल के साथ में उसका मिलाप करा दिया है तो क्या व बीच मिट्टी वायु या फिर जल बन जाता है बिल्कुल भी नहीं वो तो अपनी वृद्धि के नियम के अनुसार वायु जल और मिट्टी को बचाकर एक पेड़ बनता है और ऐसा ही धर्म के संबंध में भी है
ईसाई को हिंदू या बौद्ध नहीं हो जाना चाहिए और ना ही हिंदू और बौद्ध को ईसाई बन जाना चाहिए लेकिन हां प्रत्येक को चाहिए कि वह दूसरों के सार भाग को आत्म सार करके पुष्टि लाभ करें और सभी मिलकर वृद्धि करें और इस सृष्टि का कल्याण करें और अंत में मैं आप सभी से यही कहना चाहूंगा कि इस धर्म महासभा ने जगत के सामने अगर कुछ प्रदर्शित किया है तो वह यह है कि शुद्धता पवित्रता और दया शलता किसी संप्रदाय विशेष की संपत्ति नहीं है
और हर धर्म ने श्रेष्ठ स्त्री पुरुषों को जन्म दिया है और इन सभी सबूतों के बावजूद भी अगर कोई यह सोचता है कि सारे धर्म नष्ट हो जाए और केवल उसी का धर्म बचे तो मैं उस पर अपने पूरे दिल से दया करता हूं और उसे स्पष्ट ही बतला देता हूं कि शीघ्र ही सारे प्रतिरोधों के बावजूद भी प्रत्येक धर्म की पता का पर यह लिखा रहेगा कि सहायता करो लड़ो मत आत्म सार करो विनाश नहीं सद्भाव और शांति रखो मतभेद नहीं आप सभी को मेरा कोटि कोटि धन्यवाद
जय हिंद जय भारत:
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